- ऐक्टर : भाविन राबरी,भावेश श्रीमाली,रिचा मीना,दीपेन रावल,परेश मेहता,राहुल कोहली,किशन परमार
- डायरेक्टर : पैन नलिन
- श्रेणी:बायोग्राफी, ड्रामा
- अवधि:1 Hrs 50 Min
गुजराती में छेलो का मतलब अंतिम होता है इसलिए इसे ‘छेलो शो: द लास्ट फिल्म’ का नाम दिया गया है। ये कहानी एक नौ साल के बच्चे की है जो यह जानना है कि आखिर थियेटर में प्रोजेक्टर से फिल्में कैसे चलती हैं। छलाला गांव के नौ साल के भाविन रबारी प्रोजेक्शनिस्ट – फ़ज़ल (भावेश श्रीमाली) को रिश्वत देकर, एक सिनेमा हॉल के प्रोजेक्शन बूथ से पूरी गर्मियों को सिर्फ फिल्में देखने में बिताता हैं। वह फिल्मों और फिल्म निर्माण से पूरी तरह से इस हद तक मंत्रमुग्ध हो जाता है, कि वह एक फिल्म निर्माता बनने का फैसला करता है, जो आने वाली मुश्किलों और कठिनाई भरे समय से अनजान होता है।
आज से तकरीबन एक सौ दस साल पहले वह सिनेमा का तिलिस्म ही था, जिसने भारतीय फिल्मों के जनक कहलाने वाले दादा साहेब फाल्के को ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ की थिएटर स्क्रीनिंग के दौरान अपने मोहपाश में ऐसा जकड़ा कि वह अनगिनत बाधाओं के बावजूद फिल्म बनाने के जुनून में पड़ गए। तब से लेकर अब तक सिनेमा की ताकत और उस जादू को अनगिनत लोगों ने महसूस किया और अपने अंदाज में सिनेमा को नए आयाम दिए। 2010 में भी सिनेमा को लेकर एक अनोखी घटना हुई। गुजरात के चलाला गांव का नौ साल का नन्हा लड़का अपने परिवार के साथ सिंगल थिएटर में जय महाकाली देखने आता है और सिनेमा का मुरीद बन जाता है।
यह कहानी है निर्देशक पैन नलिन (Pan Nalin) की अपनी आपबीती, जिसे उन्होंने पर्दे पर गुजराती फिल्म ‘छेल्लो शो’ के रूप पेश किया। एक लंबे अरसे से फिल्म चर्चा में है अपने ऑस्कर ऑफिशल नॉमिनेशन को लेकर। कई इंटरनेशनल फिल्मोत्सवों में फिल्म को भरपूर प्यार और सराहना मिली है और अब यह सिनेमा हॉल में आम दर्शकों के बीच में है।
कहानी 9 साल के नन्हें समय (भाविन राबरी) की है। उसका पिता दीपेन रावल ऊंची जाति का होने के बावजूद आजीविका चलाने के लिए चाय बेचता है। मगर उसे अपने बेटे से बहुत सी उम्मीदें हैं कि बेटा उनके खानदान का नाम रोशन करेगा। यहां बेटा सिंगल थिएटर में फिल्म देखने के बाद सिनेमा का ऐसा दीवाना हो जाता है कि अब उसे सिर्फ फिल्में देखनी हैं। वह स्कूल से बंक मार कर फिल्में देखने लगता है, मगर फिर पकड़ा जाता है। उसकी इस हरकत पर वह पिता के डंडे भी खाता है, मगर सिनेमा के प्रति उसका प्यार कम नहीं होता। तभी उसकी जिंदगी में आता है सिनेमा हॉल का प्रोजेक्शनिस्ट फजल (भावेश श्रीमाली) समय की भूख अगर अलग-अलग फिल्में देखना है, तो फजल की भूख है अच्छा खाना, जो रिश्वत के रूप में समय उसे मुहैया करवाता है। असल में समय की मां उसे रोज टिफिन में स्वादिष्ट खाना बना कर देती है, जिसे वो फजल को खिलाता है और बदले में फजल उसे नई-नई फिल्में देखने देता है।